#1
अहिंसा परमो धर्मः: अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है।
#2
सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र: सही दर्शन, सही ज्ञान और सही चारित्र ही सम्पूर्णता का मार्ग हैं।
#3
जीवों में एकता: सभी जीव एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और सभी को समान दर्जा प्राप्त होना चाहिए।
#4
संयम: मन को नियंत्रित करना और वश में रखना एक महत्त्वपूर्ण गुण है।
#5
वैराग्य: भोगों से वैराग्य करना, आत्मा को मुक्त करने का मार्ग है।
#6
मिताहार: संतुलित आहार लेना स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
#7
प्रेम: सभी जीवों के प्रति प्रेम और सहानुभूति रखना सर्वभूत हित में महत्त्वपूर्ण है।
#8
दया: सभी प्राणियों पर दया करना और उनकी सहायता करना मानवता का सर्वोच्च आदर्श है।
#9
सत्य: सत्य बोलना और सत्य रहना ईश्वरीय गुणों में से एक है।
#10
वाणी परिशुद्धि: अपमान करने वाली और कठोर वचनों का प्रयोग न करना वाणी की पवित्रता का प्रमाण है।
#11
समता: सभी जीवों के प्रति समान भाव रखना और अपरिहार्य भेदभावों को छोड़ना साधारण मानवीयता है।
#12
प्रामोद: खुशी और आनंद के भाव को बढ़ाना और दूसरों के दुख को कम करना संयम का अभिव्यक्ति है।
#13
मैत्री: सभी जीवों के प्रति स्नेह और प्रेम रखना मानवीय बंधनों को तोड़ता है।
#14
संतोष: स्थितियों को स्वीकार करना और इच्छाओं को संयमित रखना संतोष की प्रतिष्ठा का कारण है।
#15
आत्मसंयम: अपने मन, वचन और कर्मों को नियंत्रित करना और आत्मा को परिशुद्ध बनाना संयम की महत्ता को प्रकट करता है।
#16
अपारिग्रह: आधारहीन और अविच्छिन्न जीवनशैली अपारिग्रह की प्रशंसा करती है।
#17
साधुता: साधुओं की प्रशंसा करना और उनसे सम्पूर्णता की शिक्षा प्राप्त करना सद्गुणों का विकास करता है।
#18
समरसता: विभिन्न धर्मों और विचारधाराओं के प्रति समरसता रखना एकता और समग्रता की संकल्पना है।
#19
आत्मानुभव: आत्मानुभव से आत्मा की प्राप्ति होती है, जिससे संसार में सुख और शांति की प्राप्ति होती है।
#20
साधना: आत्मा के विकास के लिए ध्यान, मंत्र जप, आराधना आदि का नियमित अभ्यास करना।
#21
प्रणिधान: ईश्वर की इच्छा के अनुसार जीना और अपने कर्तव्यों को पूरा करने की संकल्पना करना।
#22
आत्मा समर्पण: अपनी संपूर्णता को ईश्वर को समर्पित करना।
#23
जीवन में सरलता लाना: अपने जीवन को अनावश्यक जटिलताओं से मुक्त करना।
#24
समय का महत्त्व समझना: समय की महत्त्वपूर्णता को समझना और उसे सदुपयोग में लाना।
#25
विश्वास: आत्म-विश्वास का विकास करना और ईश्वर में विश्वास रखना।
#26
स्वाध्याय: स्वयं के और धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन के माध्यम से ज्ञान का विकास करना।
#27
प्रेम की सीमाओं को तोड़ना: सभी जीवों के प्रति प्रेम और सहानुभूति में कोई सीमा नहीं रखना।
#28
सत्याग्रह: सत्य के पक्ष में खड़ा होना और अन्याय के खिलाफ लड़ना।
#29
वाणी परिशुद्धि: अपमान करने वाली और कठोर वचनों का प्रयोग न करना वाणी की पवित्रता का प्रमाण है।
#30
उपेक्षा: निर्लज्जता, सहजता और समानता का अभिव्यक्ति उपेक्षा में होता है।
#31
समर्पण: अपने सब कर्मों को ईश्वर के लिए समर्पित करना एक साधक जीवन का मार्ग है।
#32
आत्म-विकास: आत्म-अनुशासन, आत्म-शोधन और आत्म-संयम द्वारा आत्म-विकास करना।
#33
भावुकता: संसार में भावुक होना और सबको प्रेम और सहानुभूति के साथ देखना।
#34
क्षमा: दूसरों के अपराधों को क्षमा करना और उन्हें दूसरी मौके देना।
#35
जीवन का मूल्य: मनुष्य जीवन की महत्त्वाकांक्षा और जीवन का सच्चा महत्व समझना।
#36
अनिष्ट-प्राप्ति: कठिनाइयों को स्वीकार करना और उनसे सीखना।
#37
समाधान: समस्याओं का समाधान ढूंढ़ना और उन्हें पार करना।
#38
अभिशाप: किसी को अपवित्र कर्म करने से बचना और दूसरों के प्रति आदर और प्रेम रखना।
#39
उपयोगी जीवन: समाज के लिए उपयोगी होने की सोच और कर्म।
#40
प्रतीकार: खुद को संयमित रखना और अपवित्र कार्यों से दूर रहना।
#41
आश्रय: आध्यात्मिक गुरु या संत की आश्रय लेना और उनके मार्गदर्शन में चलना।
#42
अनुप्रेक्षा: दूसरों के दुख में सहभागी होना और उनकी मदद करना।
#43
योग्यता: शिक्षा और कौशल का विकास करना और अपनी क्षमताओं का उपयोग करना।
#44
प्रतिष्ठा: समाज में आदर्श होना और अच्छे कर्मों के माध्यम से प्रतिष्ठा प्राप्त करना।
#45
निःस्वार्थता: कर्मों को स्वार्थहीनता से करना और फलों की आकांक्षा को त्यागना।
#46
अवधारणा: धारणा में आस्था रखना और आत्मा के अस्तित्व को समझना।
#47
दीर्घ सौम्यता: धीरे-धीरे और सौम्य ढंग से कर्म करना और उत्कृष्टता का अनुभव करना।
#48
दान: सर्वजनिक और निजी दान करके दूसरों की सहायता करना।
#49
प्रार्थना: ईश्वर की ओर से शक्ति और मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करना।