Kabir Ke Dohe In Hindi | कबीर दास के दोहे अर्थ सहित

Kabir Ke Dohe In Hindi | कबीर दास के दोहे अर्थ सहित | Kabir ke Dohe with Meaning in Hindi | कबीर दास के 10 दोहे अर्थ सहित | कबीर दास के दोहे अर्थ सहित PDF

Kabir Ke Dohe In Hindi

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ॥

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि रात को सोते हुए गँवा दिया और दिन खाते खाते गँवा दिया। आपको जो ये अनमोल जीवन मिला है वो कोड़ियों में बदला जा रहा है।

 

साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये |
मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ||

अर्थ : हे प्रभु मुझे ज्यादा धन और संपत्ति नहीं चाहिए, मुझे केवल इतना चाहिए जिसमें मेरा परिवार अच्छे से खा सके। मैं भी भूखा ना रहूं और मेरे घर से कोई भूखा ना जाये।

 

शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान |
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ||

अर्थ : शांत और शीलता सबसे बड़ा गुण है और ये दुनिया के सभी रत्नों से महंगा रत्न है। जिसके पास शीलता है उसके पास मानों तीनों लोकों की संपत्ति है।

 

Kabir Ke Dohe In Hindi

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।।

अर्थ : कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है. इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।

 

राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय |
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ||

अर्थ : जब मृत्यु का समय नजदीक आया और राम के दूतों का बुलावा आया तो कबीर दास जी रो पड़े क्यूंकि जो आनंद संत और सज्जनों की संगति में है उतना आनंद तो स्वर्ग में भी नहीं होगा।

 

कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ,।
जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ.।।

अर्थ :कबीर कहते हैं कि संसारी व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहां उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है। सच है कि जो जैसा साथ करता है, वह वैसा ही फल पाता है.

 

Kabir Ke Dohe In Hindi

आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर |
इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ||

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जो इस दुनियां में आया है उसे एक दिन जरूर जाना है। चाहे राजा हो या फ़क़ीर, अंत समय यमदूत सबको एक ही जंजीर में बांध कर ले जायेंगे.

 

ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय |
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ||

अर्थ : ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है।

 

ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस.।
भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस.।।

अर्थ : कबीर संसारी जनों के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न मिला जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर निकाल लेता.

 

Kabir Ke Dohe In Hindi

संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत,।
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।।

अर्थ : सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता. चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता.

 

जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई.।
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई.।।

अर्थ : कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो गुण की कीमत होती है. पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है.

 

कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार |
साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ||

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि कड़वे बोल बोलना सबसे बुरा काम है, कड़वे बोल से किसी बात का समाधान नहीं होता। वहीँ सज्जन विचार और बोल अमृत के समान हैं।

 

Kabir Ke Dohe In Hindi

कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई.।
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई.।।

अर्थ :कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गए. बगुला उनका भेद नहीं जानता, परन्तु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है. इसका अर्थ यह है कि किसी भी वस्तु का महत्व जानकार ही जानता है।

 

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

अर्थ : जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है.

 

ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय |
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ||

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है।

 

Kabir Ke Dohe In Hindi PDF

कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार |
साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ||

अर्थ : कड़वे बोल बोलना सबसे बुरा काम है, कड़वे बोल से किसी बात का समाधान नहीं होता। वहीँ सज्जन विचार और बोल अमृत के समान हैं।

 

आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर |
इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ||

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जो इस दुनियां में आया है उसे एक दिन जरूर जाना है। चाहे राजा हो या फ़क़ीर, अंत समय यमदूत सबको एक ही जंजीर में बांध कर ले जायेंगे.

 

कबीर टुक टुक देखता, पल पल गयी बिहाये
जीव जनजालय परि रहा, दिया दमामा आये।

अर्थ :कबीर टुकुर टुकुर धूर कर देख रहे है। यह जीवन क्षण क्षण बीतता जा रहा है।
प्राणी माया के जंजाल में पड़ा हुआ है और काल ने कूच करने के लिये नगारा पीट दिया है।

 

कबीर हरि सो हेत कर, कोरै चित ना लाये
बंधियो बारि खटीक के, ता पशु केतिक आये।

अर्थ : कबीर कहते है की प्रभु से प्रेम करो। अपने चित्त में कूड़ा कचरा मत भरों।
एक पशु कसाई के द्वार पर बांध दिया गया है-समझो उसकी आयु कितनी शेष बची है।

 

कागा काय छिपाय के, कियो हंस का भेश
चलो हंस घर आपने, लेहु धनी का देश।

अर्थ : कौये ने अपने शरीर को छिपा कर हंस का वेश धारण कर लिया है।
ऐ हंसो-अपने घर चलो। परमात्मा के स्थान का शरण लो। वही तुम्हारा मोक्ष होगा।

 

काल हमारे संग है, कश जीवन की आस
दस दिन नाम संभार ले,जब लगि पिंजर सांश।

अर्थ : मृत्यु सदा हमारे साथ है। इस जीवन की कोई आशा नहीं है।
केवल दस दिन प्रभु का नाम सुमिरन करलो जब तक इस शरीर में सांस बचा है।

 

कुशल कुशल जो पूछता, जग मे रहा ना कोये
जरा मुअई ना भय मुआ, कुशल कहाॅ ते होये।

अर्थ :हमेषा एक दूसरे से कुशल-कुशल पूछते हो। जब संसार में कोई नहीं रहा तो कैसा कुशल। बुढ़ापा नहीं मरा,न भय मरा तो कुशल कहाॅ से कैसे होगा।