Patra Kaise Likhate Hain
सभी आवेदन पत्र कैसे लिखें – पत्र दो दिलो या हृदयों को जोड़ने वाला सेतु है. ये ह्रदय के दर्पण है, जिनमे मानव के मनोभाव और बिचार दीखते है. ये हमारी अनुभूतियो के सच्चे दस्तवेज है. ये दूरस्थ ब्यक्तियो के बिच संपर्क – स्थापना के अति सुन्दर साधन है.
पत्र प्राण दायक तो होते ही है, प्राणघातक भी होते है. यदि इसमें कोई पारंगत हो तो प्रेम, मैत्री, व्यापार इत्यादि जीवन के अनगिन क्षेत्रो में वह सहज सफलता प्राप्त कर सकता है. एक-दो शब्दों के दुस्प्रयोग से कुछ भी दुष्परिणाम हो सकता है. अतः यह आवश्यक है की पत्र लेखन में हमें सावधानी तथा सतर्कता बरतनी चाहिए.
पत्र-लेखन के कुछ महत्वपूर्ण नियम
- पत्र-लेखन में खराब लिखावट से बचना चाहिए ।
- पत्र सुस्पष्ट (पढ़ने-योग्य) लिखना चाहिए
- पत्र सटीक एवं अभिव्यक्त विचार स्पष्ट होने चाहिए ।
- पत्र अधिक लम्बे नहीं होने चाहिए । यह संक्षिप्त एवं सारगर्भित होना चाहिए।
- पत्र में सदेव सरल शब्दों के प्रयोग होने चाहिए
- व्याकरण की अशुद्धि नहीं होनी चाहिए।
- विराम-चिह्नों का प्रयोग सावधानीपूर्वक होना चाहिए ।
पत्र – लेखन के लिए आवश्यक शर्ते
- पता – पत्र लिखने वाले को अपना पता पत्र के ऊपर दाये कोने में लिखना चाहिए.
- तिथि – पत्र भेजने की तिथि पत्र – प्रेषक के पते के ठीक निचे होने चाहिए.
- संबोधन – जिसे पत्र लिखा जा रहा है. उसकी स्थिति ध्यान में रखकर संबोधन लिखना चाहिए.
- अभिनिवेदन – संबोधन के बाद अभिनिवेदन होना चाहिए.
- मुख्य भाग – उसके बाद पत्र की मूल बाते लिखी जाएगी.
- स्वनिर्देशन– कथ्य के पश्चात स्वनिर्देशन होना चाहिए.
- हस्ताक्षर – स्वनिर्देशन के पश्चात पत्र लिखनेवाले का अपना हस्ताक्षर होना चाहिए.
- पता – पत्र-प्राप्तकर्ता का पता पोस्टकार्ड, अंतदेर्शीय या लिफाफे पर होना चाहिए.
प्रमुख पत्रो के संबोधन आदि के निर्देश
पत्र लेखक ⇒ पत्र प्राप्तकर्ता ⇒ संबोधन ⇒ अभिनिवेदन ⇒ स्वनिर्देशन
पुत्र ⇒ पिता ⇒ पुजय्वर पिता जी ⇒ सादर प्रणाम ⇒ आपका प्यरा पुत्र
मित्र⇒मित्र⇒प्रियवर⇒नमस्ते ⇒ तुम्हारा
शिष्य⇒गुरु⇒पूज्यवर⇒सादर प्रणाम⇒आपका स्नेहाकांक्षी
गुरु⇒शिष्य⇒आयुष्मान्⇒शुभाशीर्वाद⇒तुम्हारा शुभेच्छु