आज का यह निबंध साहित्य और समाज पर निबंध (Sahitya Aur Samaj Essay in Hindi) पर दिया गया हैं आप इस निबंध को ध्यान से और मन लगाकर पढ़ें और समझें। यहां पर दिया गया निबंध कक्षा (For Class) 5th, 6th, 7th, 8th, 9th, 10th और 12th के विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त हैं। विद्यार्थी परीक्षा और प्रतियोगिताओं के लिए इस निबंध से मदद ले सकते हैं।
Sahitya Aur Samaj Essay in Hindi
साहित्य में सहित का भाव सन्निहित है। इस प्रकार स्पष्ट है कि साहित्य और समाज का परस्पर घनिष्ठ संबंध है। साहित्य का आधार जन-जीवन है। वस्तुतः समाज के क्रियाकलाप का प्रभाव साहित्यकार पर पड़ता है और यह क्रिया-कलाफ साहित्यकार अपनी लेखनी द्वारा अपने पात्रों के हर्ष-विषाद के माध्यम से प्रकट करता है। यही कारण है कि साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है। दर्पण में वही दिखाई देता है जो होता है।
वस्तुत: जिस ग्रंथ में मानवीय अनुभूतियों का सच्चा चित्रण होता है, वह अमर हो जाता है और अमर हो जाता है रचनाकार भी। ‘महाभारत’ इसीलिए अमर रचना है कि उसमें तत्कालीन समाज का सच्चा चित्रण है। इसी प्रकार, कालिदास और शेक्सपियर अपने विशुद्ध वर्णन से अमर हैं। सूरदास की अमरता अगर कृष्ण के ललित स्वरूप के चित्रण के कारण है तो तुलसीदास की अमरता का राज तत्कालीन भावनाओं की निष्कलुष अभिव्यक्ति में है। प्रेमचन्द्र इसीलिए अमर हैं कि उनकी ‘निर्मला’ भारत की हिन्दू विधवा का दुखद प्रतिरूप है और ‘गोदान’ का होरी भारत का धर्मभीरू किसान।
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सच्चा साहित्य सिर्फ वास्तविक ही नहीं दिखाता भविष्य की राह भी दिखाता है। ऐसा साहित्य कभी पुराना नहीं पड़ता, वह कालजयी बन जाता है क्योंकि समाज के आधार पर निर्मित होकर वह निर्माण भी करता है। वैदिक साहित्य ने जन-जन में धार्मिक चेतना भरी। जैन और बौद्ध रचनाकारों ने अहिंसा और सत्य को घर-घर पहुँचाया। कबीर, सूर और तुलसी ने भक्ति की गंगा बहाई, वीरगाथा काल में ओज और साहस का संचार हुआ तो रीतिकाल के श्रृंगार के बीच कर्त्तव्य विमुख लोगों को राह पर लानेवाली रचनाएँ भी हुईं।
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बिहारी के एक दोहे ने जयसिंह को कर्त्तव्य-पथ पर आरूढ़ कर दिया। भूषण ने छात्रशाल को वीर रंग में रंग डाला। बंकिमचन्द और प्रेमचन्द की रचनाओं ने लोगों में राष्ट्र प्रेम को उभारा। किसी ने ठीक ही कहा है-‘साहित्य में जो शक्ति छिपी होती है वह तोप, तलवार और बम के गोलों में नहीं पाई जाती।
साहित्य में बड़ी शक्ति है क्योंकि यह अतीत की जानकारी देता, वर्तमान को चित्रित करता और सन्दर भविष्य की प्रेरणा देकर स्वस्थ मनोरंजन करता है। यह मानव मूल्यों को प्रतिष्ठापित करता है। सच तो यह है कि जहाँ का साहित्य जितना उन्नत होता है, वहाँ का समाज भी उतना ही उन्नत होता है। दूसरे शब्दों में जहाँ श्रेष्ठ साहित्य नहीं होता, वहाँ का समाज मुर्दा होता है। कहा है- “अंधकार है वहाँ आदित्य नहीं है, मुर्दा है वह देश जहाँ साहित्य नहीं है।”?